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संतोषम परम सुखम

बचपन में ये कहानी सुनी थी। भूल गया था। आज फिर सामने आयी तो सोचा इसका हिन्दी अनुवाद कर आप लोगों के साथ साझा कर दूँ। शायद आपकी महत्वाकांक्षा का बोझ थोड़ा हल्का हो जाये।

एक बहुत अमीर उद्योगपति, हैरान रह गया - यह देख कर की एक गरीब मछुआ अपनी नाव के पास आराम से बैठ कर बीड़ी सुलगा रहा है, उसे चैन है, आराम है। कोई हड़बड़ी नहीं है, क्योंकि उसे कहीं नहीं जाना, उसे ज़्यादा की लालसा क्यों नहीं है?

उस मछुआ की निश्चिंतता को देख कर उद्योगपति उसके पास जाता है, पूछता है - "तुम आराम क्यों फ़रमा रहे हो? मछलियाँ क्यों नहीं पकड़ते?"

मछुए ने उत्तर दिया - "क्योंकि मैंने आज के लिये पर्याप्त मछलियाँ पकड़ लीं हैं।"

उद्योगपति उसकी काम-चोरी से परेशान हो उठता है, उसने मछुए को सुझाव देते हुए प्रश्न किया - "तो तुम और क्यों नहीं पकड़ते?"

मछुआ ज्ञानी प्रतीत होता है, वह उत्तेजित नहीं हुआ, पलट कर उसने सवाल कर दिया - "इससे ज़्यादा मछलियों का मैं क्या करूँगा?"

उद्योगपति ख़ुद को ज्ञानी समझता था। उसे वहम था, कि वह बुद्धिमान है। उसने मछुए को अर्थशास्त्र समझाने का प्रयास किया - "तुम अधिक मछलियों को बेच का ज़्यादा धन इकट्ठा कर पाओगे!"

महुआ भोला है, उसके सवाल सीधे हैं, पूछता है - "क्या करूँगा मैं इस अधिक धन का?"

उद्योगपति उसे अब व्यापार-शास्त्र पर ज्ञान देता है - "उस मुनाफ़े से तुम एक मोटर-बोट ख़रीदना। फिर तुम और मछलियाँ पकड़ पाओगे!"

मछुआ - "उसके बाद?"

उद्योगपति - "फिर एक और ख़रीद लेना, कुछ मज़दूर रख लेना। बहुत सारा मुनाफ़ा कमाना।"

मछुआ - "उसके बाद?"

उद्योगपति - "फिर क्या? उसके बाद आराम करना!"

मछुआ - "तो तुम्हें क्या लगता है, मैं अभी क्या कर रहा हूँ?"

आज देश में असंतुष्ट उद्योगपति तो बहुमत में हैं, पर संतुष्ट मछुए नदारद हो गये हैं। आप ही तय कीजिए - पढ़ा-लिखा कौन है, और शिक्षित कौन? क्या आप संतुष्ट हैं?

लगभग हर धर्म हमें संतोष रखने को सलाह देते हैं, पर संतोष की परिभाषा नहीं बताते। संतोष का मतलब ये नहीं है कि जितना है उतने में ही जीना सीख लो।

संतोष का व्यावहारिक अर्थ है - जितना है उस पर नाज़ करो, अहंकार नहीं, उसके बाद ही अतिरिक्त की कामना करो।

बिना कामना के कोई ज़रूरत नहीं होती!

और बिना ज़रूरत के इंसान कोई काम नहीं करता!

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The current Tax Regime in India is not only regressive and complicated, but also more often than not it is punitive in nature. The flow of economy is too wild to tame. The contract between macro-economy and the micro-economy has been corrupted and its integrity is widely compromised.